Bhagavad Gita Updesh भक्ति योग Best Part 12

Bhagavad Gita Updesh भक्ति योग – वह जो मित्र और शत्रु दोनों के लिए समान रहे, यश और अपयश, गर्मी और सर्दी, सुख और दु:ख सभी में समान रहे, जो विरक्त रहे, जो निंदा और प्रशंसा में समान रहे, जो अपने वचनों को नियंत्रित रखें, जो सभी परिस्थितियों में संतुष्ट रखे, जिसे अपने घर या निवास से लगाव नहीं, और जिसका मन स्थिर है- वह व्यक्ति भक्तिमान है और मुझे अत्यंत प्रिय है|

Bhagavad Gita Updesh मोक्ष योग
Bhagavad Gita Updesh भक्ति योग

जय श्री कृष्ण, मैं हूं विशाल यादव, आपका दोस्त, और मैं गीता उपदेश के अध्याय 12 के श्लोको का सार तत्व यहां पर लिख रहा हूं, और आशा करता हूं की यह गीता ज्ञान जो प्रभु श्री कृष्ण द्वारा कही गई है, आपको जीवन में नई ऊंचाइयां और सफलताओं को पाने में मार्गदर्शन करेगी| जय श्री कृष्ण, जय श्री कृष्ण, जय श्री कृष्ण|

भक्ति योग

अर्जुन के वचन-

योग में सबसे बेहतर कौन स्थित है- जो सदैव आपकी उपासना करते हैं या जो आपके अवयैक्तिक, अविनाशी रूप में स्थित रहते हैं?

भगवान श्री कृष्ण के वचन-

भगवान श्री कृष्ण ने कहा- जो अपने मन को मुझ पर एकाग्र करते हैं, महिमा गान करते हैं, और मुझ पर अत्यंत श्रद्धा रखते हैं- मैं उन्हें परम सिद्ध मानता हूं|

यद्यपि, जो अपने इंद्रियों को नियंत्रित रखते हैं, जो सभी परिस्थितियों में शांतचित्त रहते हैं, जो सभी जीवो की सहायता करने के लिए तत्पर रहते हैं, और जो मेरी अगाध, अवयैक्तिक, अचिंत्य, अविकारी, सर्वव्यापी एवं अचल पहलू की उपासना करते हैं, वह भी मुझे प्राप्त करते हैं|

जिसका मन मेरे अवयैक्तिक पहलू पर आसक्त है उनके लिए बहुत सी कठिनाइयां है| देहबद्ध जीवन के लिए उस पथ पर प्रगति करना बहुत ही कष्टकर होता है|

हे पार्थ, जो सभी कर्मों का त्याग करके उन्हें मुझ पर समर्पित करते हैं, जो मेरा आश्रय लेते हैं, जो मेरे साथ संपर्क बढ़ाने हेतु मेरे ध्यान में संपूर्ण रूप से निमग्न रहते हैं- मैं उन्हें तुरंत जन्म और मृत्यु के सागर से पर करता हूं|

Bhagavad Gita Updesh मोक्ष योग
Bhagavad Gita Updesh भक्ति योग

केवल मुझ पर ही अपने मन एवं बुद्धि को दृढ़ करो और अंततः तुम मेरे पास आओगे| इसमें कोई संदेह नहीं|

धनंजय, यदि तुम अपना मन मुझ पर स्थिर नहीं कर सकते, तो भक्ति-योग के सतत अभ्यास द्वारा मेरे पास पहुंचने का प्रयास करो|

यदि तुम भक्ति-योग के अभ्यास को कायम नहीं रख सकते तो केवल अपने कर्मों को मुझे अर्पण करो| इस प्रकार तुम परम सिद्धि प्राप्त कर सकोगे|

यदि तुम यह भी नहीं कर पाए, तो अपना कर्म करो और उसके फलों को मुझे अर्पण करो| मन को वश में रखकर, अपने कर्मों के सारे फलों का त्याग करो|

यदि तुम इस उपदेश का पालन न कर पाए, तो अपने आप को ज्ञान की साधना में नियुक्त करो| यद्यपि, ध्यान, ज्ञान से श्रेष्ठ है| ध्यान से बेहतर है भौतिक लाभों का त्याग, क्योंकि ऐसे त्याग से शांति प्राप्त होती है|

Bhagavad Gita Updesh मोक्ष योग
Bhagavad Gita Updesh भक्ति योग

वह व्यक्ति जो द्वेष रहित है, सभी जीवो के लिए मित्रतापूर्ण व करुणामय है, जो स्वत्वात्मकता से रहित है, अहंकार से रहित है, सभी परिस्थितियों में निष्पक्ष है, क्षमाशील है, योग का आत्मसंतुष्ट साधक है, आत्मसंयमी है, जिसका संकल्प दृढ़ है, और जिसके मन और बुद्धि मेरे चिंतन में निमग्न रहते हैं- वह व्यक्ति मेरा भक्त है और इसलिए वह मुझे अत्यंत ही प्रिय है|

जो न कभी किसी को कष्ट देता है, न कभी दूसरों से पीड़ित होता है, जो हर्ष, क्रोध भय और उद्वेग से मुक्त रहता है, वह मुझे बहुत प्रिय है|

जो विरक्त, स्वच्छ, निपुण, उदासीन, एवं व्यथा रहित है, और जो सभी स्वार्थी कामनाओं का त्याग करता है, वह मुझे अत्यंत प्रिय है|

वह जो न हर्षोल्लास करें न द्वेष करें, ज न शोक करें न आकांक्षा करें, जो दोनों शुभ और अशुभ का परित्याग करें – वह व्यक्ति भक्तिमान है और मुझे बहुत प्रिय है|

वह जो मित्र और शत्रु दोनों के लिए समान रहे, यश और अपयश, गर्मी और सर्दी, सुख और दु:ख सभी में समान रहे, जो विरक्त रहे, जो निंदा और प्रशंसा में समान रहे, जो अपने वचनों को नियंत्रित रखें, जो सभी परिस्थितियों में संतुष्ट रखे, जिसे अपने घर या निवास से लगाव नहीं, और जिसका मन स्थिर है- वह व्यक्ति भक्तिमान है और मुझे अत्यंत प्रिय है|

जो श्रद्धावन है और जो मुझे वर्णित इस धर्म के सनातन पथ का अनुसरण मुझे ही सर्वोच्च मानकर करते हैं- वह मुझे अत्यंत प्रिय है|

Bhagavad Gita Updesh मोक्ष योग
Bhagavad Gita Updesh भक्ति योग

ॐ तत्सत- श्रीमद् भागवत गीता उपनिषद में श्री कृष्ण और अर्जुन के संवाद से लिए गए भक्ति-योग नामक बारहवेें अध्याय की यहां पर समाप्ति होती है|

आपका कोटि-कोटि धन्यवाद, जय श्री कृष्ण, जय श्री कृष्ण, जय श्री कृष्ण ||

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