Bhagavad Gita Updesh गुणत्रय विभाग योग – मैं ही अमर, अविनाशी ब्रह्म-ज्योति का आधार हूं, जो सनातन धर्म और परम आनंद का आधार है |
जय श्री कृष्ण, मैं हूं विशाल यादव, आपका दोस्त, और मैं गीता उपदेश के अध्याय 14 के श्लोको का सार तत्व यहां पर लिख रहा हूं, और आशा करता हूं की यह गीता ज्ञान जो प्रभु श्री कृष्ण द्वारा कही गई है, आपको जीवन में नई ऊंचाइयां और सफलताओं को पाने में मार्गदर्शन करेगी| जय श्री कृष्ण, जय श्री कृष्ण, जय श्री कृष्ण|
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गुणत्रय विभाग योग
श्री कृष्ण के वचन -
अब मैं तुमसे उस ज्ञान का वर्णन करता हूं जो सभी प्रकार के ज्ञानों में सर्वोपरि है| इसे जानकर, सभी ऋषिगण सिद्धि प्राप्त कर सके और अपने परम गंतव्य तक पहुंच सके|
इस ज्ञान का आश्रय लेकर व्यक्ति मेरी दिव्य प्रकृति प्राप्त कर लेता है| वह न तो सृष्टि के समय जन्म लेता है न वह प्रलय के समय व्यथित होता है|
हे भारत, भौतिक प्रकृति का विशाल विस्तार मेरा गर्भ है जिसे मैं गर्भाधान करता हूं और जहां से सभी जीवित प्राणी प्रकट होते हैं|
एक कुंती पुत्र, इस दुनिया में जन्म लेने वाले सभी प्रकार के जीवन अंततः भौतिक प्रकृति के महान गर्भ से पैदा होते हैं, और मैं ही बीज प्रदान करने वाला पिता हूं|
सत्त्व, रजो और तमो गुण भौतिक प्रकृति से उत्पन्न होते हैं| हे महाबाहु, प्रकृति के यह गुण अव्यय जीव को भौतिक शरीर से बांधते हैं|
हे निष्पाप अर्जुन! इन गुणों में सत्त्वगुण निर्मल होता है| यह ज्ञान प्रदान कर व्यथा से मुक्त करता है| यह मनुष्य को आनंद और ज्ञान के लिए अनुकूलित करता है|
हे कुंती पुत्र, यह जानों की रजोगुण इच्छा, ललक और आसक्तियों को उत्पन्न करता है देहबद्ध जीवो को उनके कर्मों से बांधता है|
हे भारत, यह जानों की तमोगुण सभी जीवो को भ्रमित करता है| यह उन्हें भ्रम, आलस्य और अत्यधिक नींद के माध्यम से बांधता है|
हे भारत, यह जानों की तमोगुण सभी जीवो को भ्रमित करता है| यह उन्हें भ्रम, आलस्य और अत्यधिक नींद के माध्यम से बांधता है|
हे भारत, सत्त्वगुण व्यक्ति को सुख के लिए अनुकूलित करता है, रजोगुण आसक्तियों को उत्पन्न करता है | जिससे व्यक्ति कर्मों के बंधन में बंध जाता है, और तमोगुण ज्ञान को आवृत कर के भ्रम पैदा करता है|
सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण को परास्त कर देता है; रजोगुण, तमोगुण और सत्त्वगुण को परास्त कर देता है; तो कभी तमोगुण, सत्त्वगुण और रजोगुण को परास्त कर देता है| इस प्रकार ए गुण आपस में वर्चस्व के लिए सदैव लड़ते रहते हैं|
जब ज्ञान का प्रकाश शरीर की सभी इंद्रियों को प्रकाशित करता है, तो यह समझा जाना चाहिए की सत्त्वगुण सबसे अधिक प्रबल है |
हे भरत वंश के सर्वश्रेष्ठ, जब रजोगुण सबसे अधिक प्रबल होता है तब मनुष्य लालच, स्वार्थी गतिविधियों, महत्वाकांक्षा, बेचैनी और तीव्र इच्छा के प्रभाव में रहता है|
हे कुरुनंदन, जब तमोगुण प्रबल होता है तब अज्ञान, आलस्य, मोह और मतिभ्रम प्रकट होते हैं|
जब कोई देहबद्ध जीव सत्त्वगुण के प्रभाव में देह त्याग करता है, तो वह उच्च लोको को प्राप्त करता है जहां महान मनीषियां निवास करते हैं|
जब रजोगुण के प्रभाव में किसी की मृत्यु होती है, तब वह उन लोगों के बीच पुनर्जन्म लेता है जिन्हें सांसारिक कर्मों से लगाव होता है| यदि कोई तमोगुण के प्रभाव में मृत्यु प्राप्त करता है तो वह मूढ़योनि (मूर्खों का योनि) में पुनर्जन लेता है|
यह कहा गया है कि सात्विक कर्मों का फल निर्मलता है, राजसिक कर्मों का परिणाम दु:ख है, और तामसिक कर्मों का परिणाम अज्ञान है |
सत्त्वगुण से ज्ञान की उत्पत्ति होती है, रजोगुण से लोभ, तथा तमोगुण से मोह, भ्रम एवं अज्ञानता की उत्पत्ति होती है|
सात्विक व्यक्ति उच्च लोको को प्राप्त करते हैं, जो राजसिक हैं वे मध्य (पृथ्वी लोक) में रह जाते हैं, और जो तामसिक हैं उनकी जीवन के निम्न स्तर में अधोगति होती है|
जब कोई यह समझ लेता है की प्रकृति के गुणों को छोड़कर कोई अन्य सक्रिय कर्ता नहीं है, और इन गुणों के परे स्थित परम पुरुष को वह जानता है, तब वह मेरा स्वभाव प्राप्त कर लेता है|
अर्जुन के वचन-
हे कृष्ण, जो इन त्रिगुणों से परे हैं उसे किन लक्षणों से पहचाना जा सकता है? उसका आचरण कैसा होता है और प्रकृति के इन त्रिगुणों को वह कैसे पार करता है?
श्री कृष्ण के वचन -
है पांडु-पुत्र जो प्रकाश, आसक्ति या भ्रम की उपस्थिति से घृणा करता है और न ही उनके लुप्त हो जाने पर उनकी इच्छा रखता है, जो उदासीन रहता है और प्रकृति के त्रिगुणों से प्रभावित या विचलित नहीं होता है, जो सुख और दु:ख दोनों में समान रहता है, स्वयं में ही संतुष्ट रहता है, जो मिट्टी के ढेले, पत्थर और सोने के बीच कोई स्वाभाविक अंतर नहीं देखता,
जो दोनों अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों से अबाधित रहता है, जो बुद्धिमान है, जिसके लिए अपमान और प्रशंसा समान है, जो यश और अपयश को एक समान रूप से देखता है, जो मित्र और शत्रु दोनों के प्रति निष्पक्ष है, जो सांसारिक या भौतिक कार्यों का त्याग करता है – ऐसे व्यक्ति को भौतिक प्रकृति के गुणों से परे मानना चाहिए |
जो भक्ति-योग में बिना विचलित हुए मेरी सेवा में लगे रहते हैं, वे भौतिक प्रकृति के इन त्रिगुणों को पार कर मोक्ष (ब्रह्म-तत्व) के योग्य हो जाते हैं |
मैं ही अमर, अविनाशी ब्रह्म-ज्योति का आधार हूं, जो सनातन धर्म और परम आनंद का आधार है |
ॐ तत्सत- श्रीमद् भागवत गीता उपनिषद में श्री कृष्ण और अर्जुन के संवाद से लिए गए गुणत्रय विभाग योग नामक चौदहवेें अध्याय की यहां पर समाप्ति होती है|
आपका कोटि-कोटि धन्यवाद, जय श्री कृष्ण, जय श्री कृष्ण, जय श्री कृष्ण ||
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Eternal Shri Krishna
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