निर्वाण षट्कम
आदि शंकराचार्य के द्वारा रचित निर्वाण षट्कम का मूल भाव वैराग्य है। इस मंत्र को ब्रह्मचर्य मार्ग का समानार्थी माना जाता है। इसकी ध्वनि हमारे अंतरतम की गहराइयों में हलचल पैदा कर देती है।
Nirvana Shatakam, composed by Adi Shankara himself, This mantra is considered synonymous with the path of celibacy. Its sound creates a stir in the depths of our being.
निर्वाण का अर्थ है “निराकार”।
निर्वाण षट्कम इस बारे में है कि – आप यह या वह नहीं बनना चाहते। यदि आप यह या वह नहीं बनना चाहते, तो आप क्या बनना चाहते हैं? आपका मन यह नहीं समझ सकता, क्योंकि आपका मन हमेशा कुछ न कुछ बनना चाहता है। अगर मैं कहूं, “मैं यह नहीं बनना चाहता, मैं वह नहीं बनना चाहता,” तो आप सोचेंगे, “अरे, कोई महान चीज की बात कर रहे हैं!” महान नहीं। “अरे, तो क्या रिक्तता?” रिक्तता भी नहीं। “शून्यता?” शून्यता भी नहीं।
Nirvana means “Formless”.
Nirvana Shatkam is about – you don’t want to be this or that. If you don’t want to be this or that, what do you want to be? Your mind cannot understand this, because your mind always wants to be something. If I say, “I don’t want to be this, I don’t want to be that,” you’ll think, “Oh, we’re talking about something great!” not great. “Hey, so what vacancy?” Not even a void. “Void?” Not even emptiness.
मनोबुद्धयहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे
न च व्योम भूमिर्न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥1॥
Mano-Buddhy-Ahangkaara Chittaani Naaham
Na Cha Shrotra-Jihve Na Cha Ghraanna-Netre |
Na Cha Vyoma Bhuumir-Na Tejo Na Vaayuh
Chid-Aananda-Ruupah Shivo‘ham Shivo’ham ||1||
अर्थ-
मैं न तो मन हूं, न बुद्धि, न अहंकार, न ही चित्त हूं
मैं न तो कान हूं, न जीभ, न नासिका, न ही नेत्र हूं
मैं न तो आकाश हूं, न धरती, न अग्नि, न ही वायु हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
Means:
Neither am I the Mind, nor the Intelligence or Ego,
Neither am I the organs of Hearing (Ears), nor that of Tasting (Tongue), Smelling (Nose) or Seeing (Eyes),
Neither am I the Sky, nor the Earth, Neither the Fire nor the Air,
I am the Ever Pure Blissful Consciousness; I am Shiva, I am Shiva,
The Ever Pure Blissful Consciousness.
न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु: न वा सप्तधातुर्न वा पञ्चकोश:
न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू चिदानन्द रूप:शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥2॥
Na Cha Praanna-Samjnyo Na Vai Pan.cha-Vaayuh
Na Vaa Sapta-Dhaatuh Na Vaa Pan.cha-Koshah |
Na Vaak-Paanni-Paadam Na Chopastha-Paayu
Chid-Aananda-Ruupah Shivo‘ham Shivo‘ham ||2||
अर्थ
मैं न प्राण हूं, न ही पंच वायु हूं
मैं न सात धातु हूं,
और न ही पांच कोश हूं
मैं न वाणी हूं, न हाथ हूं, न पैर, न ही उत्सर्जन की इन्द्रियां हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
Means:
Neither am I the Vital Breath, nor the Five Vital Airs,
Neither am I the Seven Ingredients (of the Body), nor the Five Sheaths (of the Body),
Neither am I the organ of Speech, nor the organs for Holding ( Hand ), Movement ( Feet ) or Excretion,
I am the Ever Pure Blissful Consciousness; I am Shiva, I am Shiva,
The Ever Pure Blissful Consciousness.
न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:
न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥3॥
Na Me Dvessa-Raagau Na Me Lobha-Mohau
Mado Naiva Me Naiva Maatsarya-Bhaavah |
Na Dharmo Na Cha-Artho Na Kaamo Na Mokssah
Chid-Aananda-Ruupah Shivo‘ham Shivo‘ham ||3||
अर्थ
न मुझे घृणा है, न लगाव है, न मुझे लोभ है, और न मोह
न मुझे अभिमान है, न ईर्ष्या
मैं धर्म, धन, काम एवं मोक्ष से परे हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
Means:
Neither do I have Hatred, nor Attachment, Neither Greed nor Infatuation,
Neither do I have Pride, nor Feelings of Envy and Jealousy,
I am Not within the bounds of Dharma (Righteousness), Artha (Wealth), Kama (Desire) and Moksha (Liberation) (the four Purusarthas of life),
I am the Ever Pure Blissful Consciousness; I am Shiva, I am Shiva,
The Ever Pure Blissful Consciousness.
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम् न मन्त्रो न तीर्थं न वेदार् न यज्ञा:
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानन्द रूप:शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥4॥
Na Punnyam Na Paapam Na Saukhyam Na Duhkham
Na Mantro Na Tiirtham Na Vedaa Na Yajnyaah |
Aham Bhojanam Naiva Bhojyam Na Bhoktaa
Chid-Aananda-Ruupah Shivo‘ham Shivo‘ham ||4||
अर्थ
मैं पुण्य, पाप, सुख और दुख से विलग हूं
मैं न मंत्र हूं, न तीर्थ, न ज्ञान, न ही यज्ञ
न मैं भोजन(भोगने की वस्तु) हूं, न ही भोग का अनुभव, और न ही भोक्ता हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
Means:
Neither am I bound by Merits nor Sins, neither by Worldly Joys nor by Sorrows,
Neither am I bound by Sacred Hymns nor by Sacred Places, neither by Sacred Scriptures nor by Sacrifies,
I am Neither Enjoyment (Experience), nor an object to be Enjoyed (Experienced), nor the Enjoyer (Experiencer), I am the Ever Pure Blissful Consciousness; I am Shiva, I am Shiva,
The Ever Pure Blissful Consciousness.
न मे मृत्यु शंका न मे जातिभेद:पिता नैव मे नैव माता न जन्म:
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥5॥
Na Mrtyur-Na Shangkaa Na Me Jaati-Bhedah
Pitaa Naiva Me Naiva Maataa Na Janmah |
Na Bandhurna Mitram Gurur-Na-Iva Shissyam
Chid-Aananda-Ruupah Shivo‘ham Shivo‘ham ||5||
अर्थ
न मुझे मृत्यु का डर है, न जाति का भेदभाव
मेरा न कोई पिता है, न माता, न ही मैं कभी जन्मा था
मेरा न कोई भाई है, न मित्र, न गुरू, न शिष्य,
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
Means:
Neither am I bound by Death and its Fear, nor by the rules of Caste and its Distinctions,
Neither do I have Father and Mother, nor do I have Birth,
Neither do I have Relations nor Friends, neither Spiritual Teacher nor Disciple,
I am the Ever Pure Blissful Consciousness; I am Shiva, I am Shiva,
The Ever Pure Blissful Consciousness.
अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्
न चासंगतं नैव मुक्तिर्न मेय: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥6॥
Aham Nirvikalpo Niraakaara-Ruupo
Vibhu-Tvaachcha Sarvatra Sarvendriyaannaam |
Na Chaa-Sanggatam Naiva Muktirna Meyah
Chid-aananda-ruupah Shivo’ham Shivo’ham ||6||
अर्थ
मैं निर्विकल्प हूं, निराकार हूं
मैं चैतन्य के रूप में सब जगह व्याप्त हूं, सभी इन्द्रियों में हूं,
न मुझे किसी चीज में आसक्ति है, न ही मैं उससे मुक्त हूं,
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
Means:
I am Without any Variation, and Without any Form,
I am Present Everywhere as the underlying Substratum of everything, and behind all Sense Organs, Neither do I get Attached to anything, nor get Freed from anything,
I am the Ever Pure Blissful Consciousness; I am Shiva, I am Shiva,
The Ever Pure Blissful Consciousness.