Gita Updesh– ब्रह्मा के एक दिन में 1000 युग होता है, और उनकी रातें भी इस अवधि तक रहती हैं| ब्रह्मा के दिन की शुरुआत में, सभी वस्तुएं अव्यक्त अवस्था से व्यक्त (प्रकट) हो जाते हैं| जब ब्रह्मा की रात्रि शुरू होती है, पुन: में अव्यक्त हो जाते हैं|हे पार्थ, सभी जीव बारंबार जन्म लेते हैं| जब ब्रह्मा की रात निकट आती है तब वह मुझ में समा जाते हैं, और ब्रह्मा के दिन के आगमन के साथ में पुन: जन्म लेते हैं|
जय श्री कृष्ण, मैं हूं विशाल यादव, आपका दोस्त, और मैं गीता उपदेश के अध्याय 8 के श्लोको का सार तत्व यहां पर लिख रहा हूं, और आशा करता हूं की यह गीता ज्ञान जो प्रभु श्री कृष्ण द्वारा कही गई है, आपको जीवन में नई ऊंचाइयां और सफलताओं को पाने में मार्गदर्शन करेगी| जय श्री कृष्ण, जय श्री कृष्ण, जय श्री कृष्ण|
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तारक-ब्रह्म योग
अर्जुन के वचन-
अर्जुन ने पूछा- है पुरुषोत्तम, ब्रह्मन क्या है? स्व (आत्मा) क्या है? कर्म क्या है? यह भौतिक सृष्टि क्या है? देवतागण कौन है? यज्ञ के स्वामी कौन हैं और वह हमारे देह में कैसे निवास करते हैं? हे मधुसूदन, जो मृत्यु के समय आत्म नियंत्रित होते हैं कि आपको कैसे जान पाते हैं?
भगवान श्री कृष्ण के वचन-
भगवान श्री कृष्ण ने उत्तर दिया- ऐसा कहा जाता है कि ब्रह्मन अविनाशी परम सत्य है, और आत्मा ही जीव का मूल आध्यात्मिक स्वभाव है| कर्म वह है जो जन्म, जीवन की अवधि और मृत्यु का कारण है| हे नरश्रेष्ठ, भौतिक प्रकृति वह है जो निरंतर परिवर्तनशील है, और यह भौतिक जगत परम पुरुष का ही विराट स्वरूप है| मैं ही सभी जीवो में स्थित, सभी यज्ञों का स्वामी हूं|
मृत्यु के समय, जो विशेष रूप से मेरा स्मरण करते हुए शरीर का त्याग करता है, वह मेरी दिव्य प्रकृति को प्राप्त करता है इसमें कोई संदेह नहीं है|
हे कुंतीपुत्र, मृत्यु के समय व्यक्ति जिस भाव का स्मरण करता है, निश्चित ही वह उसी भाव को प्राप्त करता है|
अतएव, हे अर्जुन! तुम सदैव मेरा स्मरण करते हुए युद्ध करो| अपने मन एवं बुद्धि को मुझ पर समर्पित करो, और इस तरह तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त करोगे|
हे पार्थ, जो योग का अभ्यास करता है और बिना अपने पथ से भटके, मन को केंद्रित करता है, एवं दिव्य परम-पुरुष पर ध्यान करता है, निश्चित ही वह उन्हें प्राप्त करता है|
व्यक्ति को परम पुरुष पर ध्यान करना चाहिए जो सर्वज्ञ, पुरातन, एवं परम-नियंता है, जो परमाणु के कण से भी छोटे हैं किंतु समस्त जगत के मूल-आधार है, जिनका रूप अचिंत्य है, जो सूर्य की भांति कांतिमान है, और इस भौतिक प्रकृति से परे हैं|
मृत्यु के समय, जो व्यक्ति योग शक्ति के प्रभाव से भौहो के बीच प्राण-वायु को समेटकर, उनका (परम पुरुष का) अविचलित मन से स्मरण करता है, वह निश्चित रूप से दिव्य परम पुरुष के निकट पहुंचता है|
सन्यास आश्रम में स्थित महान ऋषियों एवं वेदों के विद्वान ब्रह्मचर्य के व्रत को स्वीकार कर ब्रह्मन में प्रवेश करने के लिए ॐ (ओम) का उच्चारण करते हैं| यह विधि अब मैं तुम्हें बताऊंगा|
व्यक्ति को अपने सभी इंद्रियों को वश में कर, हृदयस्थित मन पर एकाग्रता धारण कर, प्राण वायु को भौहो के मध्य स्थित कर, स्वयं को पूर्णता योग की स्थिति में स्थापित करना चाहिए|
इस प्रकार, सर्वोत्कृष्ट एकाक्षर ॐ का जाप करते हुए और मेरा स्मरण करते हुए, जब कोई भौतिक शरीर का त्याग करता है, तब वह मेरे परमधाम को प्राप्त करता है|
हे पार्थ, जो योगी अनन्य भाव से सदैव मेरा स्मरण करता है उसके लिए मैं सुलभ हूं, क्योंकि वह सदैव मेरे साथ जुड़ा रहता है| जिन महापुरुषों ने मुझे प्राप्त कर लिया है वह कभी दु:खों से पूर्ण इस अनित्य जगत में जन्म नहीं लेते, क्योंकि उन्हें परम सिद्धि प्राप्त हो चुकी होती है|
हे कुंतीपुत्र, ब्रह्मलोक तक के सभी ग्रह जन्म और पुनर्जन्म के स्थान है, किंतु जो मेरे पास पहुंच जाते हैं, वह फिर कभी जन्म नहीं लेते|
ब्रह्मा के एक दिन में 1000 युग होता है, और उनकी रातें भी इस अवधि तक रहती हैं| ब्रह्मा के दिन की शुरुआत में, सभी वस्तुएं अव्यक्त अवस्था से व्यक्त (प्रकट) हो जाते हैं| जब ब्रह्मा की रात्रि शुरू होती है, पुन: में अव्यक्त हो जाते हैं|
हे पार्थ, सभी जीव बारंबार जन्म लेते हैं| जब ब्रह्मा की रात निकट आती है तब वह मुझ में समा जाते हैं, और ब्रह्मा के दिन के आगमन के साथ में पुन: जन्म लेते हैं|
परंतु, इस अवस्था से परे एक और अव्यक्त अवस्था है जो शाश्वत है और अन्य सभी जीवो के नष्ट हो जाने पर भी वह नष्ट नहीं होता| कहा जाता है कि यह अवस्था अव्यक्त एवं शाश्वत है, और इसे ही परम गंतव्य के रूप में बताया गया है, इसके प्राप्ति के पश्चात कोई लौटकर नहीं आता| यही मेरा परमधाम है|
हे पार्थ, वह परम पुरुष, जिसके भीतर सभी जीव स्थित है और जो संपूर्ण सृष्टि को व्याप्त करते हैं, वह केवल अनन्य भक्ति-योग द्वारा ही प्राप्त किया जा सकते हैं|
हे भारत श्रेष्ठ! अब मैं उन विभिन्न कालो को बताऊंगा, जिन में इस संसार में प्रस्थान करने के बाद योगी मुक्ति या पुनर्जन्म प्राप्त करते हैं|
जो ब्रह्मज्ञानी हैं, वह अग्नि और ज्योति के पथ पर, शुक्लपक्ष में, या सूर्य के उत्तरायण की अवधि के उन छह मासो में, इस संसार से गुजर जाने के बाद ब्रह्मज्योति को प्राप्त करते हैं|
जो योगी धुएं के पथ पर, रात्रि में, कृष्णपक्ष में, या सूर्य के दक्षिणायन की अवधि के 6 महीनो में, इस संसार का त्याग करते हैं, वह चंद्रलोक पहुंचते हैं, किंतु वहां से पुनः लौट आते हैं|
प्रकाश और अंधकार के इन दोनों मार्गों को इस संसार में अस्थाई रूप में स्वीकार किया जाता है| एक मार्ग (प्रकाश का मार्ग) से व्यक्ति लौटकर नहीं आता, किंतु दूसरे मार्ग (अंधकार का मार्ग) से वह पुनः लौटकर आता है| जो योगी इन दोनों मार्गों को जानता है वह कभी व्यग्र नहीं होता| इसलिए है अर्जुन, हर समय योग में नियत रहो|
यह जानते हुए, एक योगी वेदों के अध्ययन के माध्यम से, यज्ञ में आहुति देने से, तपस्या करने से, और परोपकार से प्राप्त किए गए सभी प्रकार के पुण्य परिणामो से परे हो जाता है| वह योगी परम सनातन धर्म प्राप्त करता है|
ॐ तत्सत- श्रीमद् भागवत गीता उपनिषद में श्री कृष्ण और अर्जुन के संवाद से लिए गए तारक-ब्रह्म योग नामक आठवेें अध्याय की यहां पर समाप्ति होती है|
आपका कोटि-कोटि धन्यवाद, जय श्री कृष्ण, जय श्री कृष्ण, जय श्री कृष्ण ||
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